Swachh Bharat Mission Urban 2.0


बल्क वेस्ट जनरेटर्स की कठिन चुनौती को स्वीकार कर बड़ी मुश्किल
का हल सुझा रहे शहर

बल्क वेस्ट जनरेटर्स से मिल रही चुनौतियां, अनोखे प्रयासों से शहर निकाल रहे समाधान
कचरे का बोझ बढ़ाने वाली बीडब्ल्यूजी इकाइयों को वेस्ट मैनेजमेंट की राह दिखाते शहर
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स को फॉलो कर वेस्ट मैनेजमेंट में योगदान दे रहे बल्क वेस्ट जनरेटर्स



वेस्ट मैनेजमेंट आज भी अगर दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा हुआ है, तो उसके पीछे एक बड़ा कारण ऐसी इकाइयां हैं, जो सबसे ज्यादा तादाद में कचरा उत्पन्न करती हैं। इन इकाइयों में ऐसे संस्थान होते हैं जो संयुक्त रूप से काम करते हुए बड़ी तादाद में वेस्ट जनरेट करते हैं। ऐसी इकाइयों की वजह से ही किसी भी शहर पर हर दिन उत्पन्न होने वाले कचरे का बोझ तेजी से बढ़ता है। यही वजह है कि ऐसी इकाइयां जो बल्क वेस्ट जनरेटर (बीडब्ल्यूजी) कहलाती हैं, वह देशभर के शहरों पर कचरे के बोझ की चुनौती बढ़ा रही हैं। आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत वर्तमान में देशभर के शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले डेढ़ लाख टन कचरे में 76 प्रतिशत की हर दिन प्रोसेसिंग की जा रही है, जिसमें से एक अनुमान के अनुसार 45 से 60 हजार टन कचरा यानी 30 से 40 प्रतिशत योगदान बल्क वेस्ट जनरेटर्स का होता है। वहीं कुछ ऐसे शहर भी हैं जो इन कठिन चुनौतियों का डटकर सामना कर रहे हैं और दूसरे शहरों को भी इस बड़ी मुश्किल का हल सुझा रहे हैं।

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बल्क वेस्ट जेनरेटर (बीडब्ल्यूजी) और नियम: म्यूनिसिपिल सॉलिड वेस्ट (एमएसडब्ल्यू) मैनेजमेंट रूल्स 2016 के अनुसार बल्क वेस्ट जेनरेटर (बीडब्ल्यूजी) एक ऐसी इकाई को कहा जाता है, जो प्रतिदिन 100 किलोग्राम से अधिक कचरा उत्पन्न करती है। बल्क वेस्ट जनरेटर गाइडलाइंस 2017 के मुताबिक अनुमान है कि किसी भी शहर के कुल कचरे में बीडब्ल्यूजी का योगदान 30 से 40% होता है, जिसमें से 50-70% कचरा बायोडिग्रेडेबल होता है। शहरों के शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को अपने म्यूनिसिपल बाइ-लॉ में दिए गए जरूरी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए बीडब्ल्यूजी के वेस्ट मैनेजमेंट एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लीगल मैंडेट का भी पालन करना होता है। क्षेत्र के बल्क वेस्ट जनरेटर्स की पहचान करना शहरी स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है, अगर कोई खुद को बीडब्ल्यूजी कैटेगरी में सेल्फ डिक्लेयर नहीं करता है और नियमों का उल्लंघन करता है, यूएलबी उसपर कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है।

बीडब्ल्यूजी की श्रेणी में आने वाली इकाइयां और संस्थान: बल्क वेस्ट जनरेटर्स में ऐसी ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, सभी तरह के स्कूल और कॉलेज, बड़े संगठन, कार्यक्रम एवं आयोजन स्थल, छोटे-बड़े होटल, छोटे-बड़े ढाबे या रेस्तरां, केंद्र या राज्य सरकार के विभाग, शहरी स्थानीय निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निजी कंपनियां, छोटे-बड़े अस्पताल एवं नर्सिंग होम आदि सभी शामिल होते हैं, जहां से हर दिन सौ किलो से ज्यादा कचरा निकलता है।

वेस्ट मैनेजमेंट संग विकसित हो रहे राजस्व के साधन : बल्क वेस्ट जनरेटर्स से मिलने वाले कचरे का प्रबंधन कर एक ओर गैस का उत्सर्जन किया जा रहा है, वहीं उसे खुले बाजार में बेचकर राजस्व जुटाने का विकल्प भी विकसित किया जा रहा है। तमिलनाडु में चेन्नई नगर निगम द्वारा चेत्पेट में स्थापित किए गए 100 टन प्रतिदिन की क्षमता वाले बायो-सीएनजी प्लांट पर करीब 500 बल्क वेस्ट जनरेटर्स से आने वाले फूड/ऑर्गेनिक वेस्ट से संचालित होकर गैस का उत्पादन कर रहा है, जिसे खुले बाजार में बेचा जा रहा है। यहां इस तरह के दो प्लांट सुचारू रूप से संचालित हैं, वहीं सौ-सौ टीपीडी क्षमता के पांच अन्य प्लांट निर्माण कार्य प्रगति पर है। चंडीगढ़ में बल्क वेस्ट जनरेटर्स से भारी तादाद में मिलने वाले कचरे के प्रबंधन संबंधी चुनौती से निपटने के लिए सेक्टर-49 में तेजी से काम करने वाली पहली इंस्टैंट मिक्सड वेस्ट प्रोसेसिंग मशीन स्थापित की गई। यह ब्लक वेस्ट जनरेटर्स के वेस्ट प्रोसेसिंग के काम को डिसेंट्रलाइज करते हुए कुशलता से निस्ताकरण की प्रक्रिया को पूरा कर रहा है। पुणे, राजामहेंद्रवरम और इंदौर जैसे शहरों ने बीडब्ल्यूजी द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट प्रोत्साहन योजनाएं भी शामिल की हैं जो बहुत प्रभावी पाई गई हैं।

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मिसाल पेश कर रहे आगरा और गुरुग्राम जैसे शहर : सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (एमएसडब्ल्यू) मैनेजमेंट के संबंध में पॉलिसी और इंप्लीमेंटेशन पर काम कर रहा है। अपने प्रोग्राम के हिस्से के रूप में, केंद्र ने बीडब्ल्यूजी द्वारा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के एजेंडे पर भी ध्यान केंद्रित किया है और मौजूदा मैकेनिज्म को समझने, अच्छी प्रयासों को तलाशने और सुधार कार्यों की सिफारिश करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के अंतर्गत आने वाले हरियाणा के गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थापित की गई व्यवस्थाओं का अध्ययन किया। इस विषय पर स्टेकहोल्डर्स के साथ बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए दोनों अध्ययनों से मिली सीख को दो अलग-अलग रिपोर्ट में शामिल किया गया।

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गुरुग्राम जिले के अंतर्गत आने वाले मानेसर शहर की नगर निगम ने मॉनसून ब्रीज सोसायटी की कहानी को साझा किया, जिसमें बताया गया कि किस तरह इस बल्क वेस्ट जनरेटर सोसायटी ने अपने गीले दैनिक कचरे के प्रबंधन के लिए सुंदर सेटअप तैयार किया है। यहां रेजिडेंशियल वेलफेयर सोसायटी और स्थानीय निवासियों ने वेस्ट से कंपोस्ट बनाने के प्लांट की जिम्मेदारी खुद संभाली हुई है, जो अपने यहां रोजाना निकलने वाले गीले कचरे का सफलतापूर्वक निस्तारण कर रहे हैं और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ठीक इसी तरह से आगरा के राजनगर में नगर निगम के माध्यम से तीन डिसेंट्रलाइज्ड वेस्ट टु कंपोस्ट प्लांट स्थापित किए गए हैं, जहां पर 2000 के करीब बल्क वेस्ट जनरेटर्स से मिलने वाला ऑर्गेनिक वेस्ट स्थायी रूप से प्रबंधित किया जा रहा है। इनमें से दो प्लांट्स पर बसई, सिंकदरा और बरोली अहीर एरिया की तीन मंडियों से आने वाला फल-सब्जियों का वेस्ट और एक जगह मंदिरों से आने वाला फूलों का वेस्ट इकट्ठा किया जाता है। ट्रांसपोर्ट नगर में 1 टन और राजनगर के दोनों प्लांट पर 2-2 टन वेस्ट प्रतिदिन निस्तारित किया जा रहा है।

बल्क वेस्ट के समाधान के लिए आवश्यक प्रक्रिया: ज्यादा तादाद में निकलने वाले कचरे के समाधान के लिए प्रोसेसिंग इकाई का चुनाव करते समय जिन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है, उनमें से एक है जिस स्थान पर वेस्ट प्रोसेसिंग की जा रही हो, वह बीडब्ल्यूजी इकाइयों से जितना संभव हो उतना करीब हो। इसमें स्रोत पर ही कचरे को विभिन्न श्रेणियों में अलग करने के सोर्स सेग्रीगेशन कॉन्सेप्ट का पालन किया जाता है। यह व्यवस्था नजदीक ही स्थापित करने से सबसे पहले जो लागत कचरे को लाने-ले जाने में परिवहन के रूप में आती है, उसमें बचत की जा सकती है और हमारे शहर काफी आसानी से रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकल (3आर) अवधारणा अपनाकर वेस्ट से बने रीसाइकल्ड उत्पादों का फिर से उपयोग कर सकते हैं। इस तरह वेस्ट टू वेल्थ की व्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ-साथ इसे सर्कुलर इकोनॉमी का भी हिस्सा बनाया जा रहा है।

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