देश भर में 152.24 हजार टन कचरा प्रतिदिन इकट्ठा होता है जिससे निपटने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत
तेजी से कचरे को स्रोत पर ही अलग करने की मुहिम चल रही है। देश में स्वच्छता की अलख़ तो जग गई है, लेकिन
इकट्ठे हुए कबाड़ के निपटान की समस्या से अभी भी हमें जूझना पड़ रहा है। हालांकि जनता द्वारा चलाए जा रहे
अभियान की एक विशेषता यह होती है कि जिस अभियान में जनभागीदारी होती है उसमें समस्याओं के समाधान के भी
अनोखे रंग देखने को मिलते हैं।
“वेस्ट टु वेल्थ” सर्कुलर इकॉनमी का बेहतरीन उदाहरण है। बताते चलें कि सर्कुलर इकॉनमी एक ऐसी अर्थव्यवस्था
है जहां उत्पादों को सस्टेनेबल, पुनः उपयोग और कच्चे माल से पुर्ननवीनीकरण या ऊर्जा के स्रोत के रूप में
उपयोग किया जाता है। इसमें 3R यानि रीड्यूस, रीयूज़ और रीसाइकल समेत सामग्रियों के मरम्मत कार्य शामिल हैं।
वेस्ट टु वंडर पार्कों में इस व्यवस्था का भरपूर लाभ उठाया गया है। इसमें कबाड़ का पुनः प्रयोग कर अनोखे
पार्क और सार्वजनिक स्थलों का निर्माण और सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, जो शहरी स्थानीय निकायों के आय का
स्रोत बन रहे हैं।
खास बात यह है कि सफाई के दौरान जो कचरा और कबाड़ निकल रहा है उसको ही रीसाइकल और रीयूज करते हुए वेस्ट
मैटेरियल से कई अनोखे प्रयास किए जा रहे हैं। चंडीगढ़ का रॉक गार्डन देश का ऐसा सबसे पहला उदाहरण है, जो
पूर्णतः औद्योगिक एवं घरेलू कबाड़ से बनाया गया है। दूसरी ओर 1.75 एकड़ में फैला एक और वेस्ट टु वंडर पार्क
आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पार्क में सभी संरचनाएं अपशिष्ट उत्पादों से बनी हैं जैसे लोहे की चादरें,
छड़ें, पंखे, ऑटोमोबाइल के पुर्जे इत्यादि।
देश का दिल दिल्ली के दर्शनीय स्थलों की सूची में एक नया थीम पार्क जुड़ गया जो कि 'वेस्ट टू वंडर' थीम पर आधारित है। दिल्ली के वेस्ट टु वंडर पार्क से निगम को आर्थिक आधार मिला। औद्योगिक कचरे और अन्य बेकार सामग्री जैसे स्क्रैप मेटल और शहर के लैंडफिल से खरीदे गए ऑटो के पुर्जे से बनने वाले अलग अलग शहरों में पार्कों को इस तरह से बनाया जा रहा है कि इनसे आर्थिक आय के भी रास्ते खुल रहे हैं। कुछ जगहों पर सोलर ट्री और रूफटॉप पैनल लगाए हैं जो लगभग 50 किलोवाट बिजली पैदा कर सकते हैं। इससे बनने वाली बिजली को राजस्व अर्जित करने के लिए बिजली वितरण कंपनियों को बेचा जा रहा है।
कुछ संस्थाएं ऐसी हैं जो वेस्ट से तैयार किये गए फर्नीचर पब्लिक पार्कों और स्कूलों को मुहैया करवा रही हैं।
कूड़े के निपटारे के उद्देश्य से ही दिल्ली की एक संस्था ने अपने एक कार्यक्रम में 1064 स्कूलों में वेस्ट
मैनेजमेंट के माध्यम से छात्रों को टेबल और चेयर पर बैठ कर शिक्षा लेने की उनकी मूलभूत आवश्यकता को पूरा करवाया
और छात्रों को कचरे के सही तरीके से निपटारे के विषय पर ज्ञान वर्धन करवाया। मेरठ नगर निगम ने भी ऐसी ही एक
अनोखी पहल करते हुए 7 वर्ष तक के बच्चों के खेलने के लिए सड़क के किनारे किड्स जोन का निर्माण कराया है।
कुछ शहरों में “कबाड़ से जुगाड़” अभियान के अंतर्गत म्युरल्स (भित्तीचित्र), सेल्फी प्वाइंट बना कर शहरों का
कूड़ा मुक्त कर सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। इसी अभियान के अंतर्गत नोएडा अथॉरिटी ने शहर वासियों को तोहफे
के रूप में सबसे पहले गांधीजी के चरखे की सौगात दी। नौएडा ने इस तरह के और भी स्कल्पचर कई जगह लगाने की
तैयारी कर रखी है।
क्या आप जानते हैं सिर्फ वेस्ट प्लास्टिक या C&D अपशिष्ट को ही रीसाइकल कर दुबारा उपयोग नहीं किया जाता
बल्कि फ्लावरसाइक्लिंग भी होती है। इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कानपुर में मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों
को एक स्टार्टप ने सफलतापूर्वक उत्पादों में परिवर्तित कर कई तरह के उत्पाद बनाए हैं जैसे- अगरबत्ती,
धूपबत्ती, होली के रंग जो कि 100% प्राकृतिक और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं।
इस तरह वेस्ट मैनेजमेंट के माध्यम से न सिर्फ कचरे के ढेर को कम किया जा रहा है बल्कि एंड टु एंड प्रक्रिया से पुनर्निमित वस्तुएं तैयार कर आमजन तक पहुंचा कर जागरूकता भी बढ़ाई जा रही है। सर्कुलर इकॉनमी की तरफ बढ़ते शहर और उनके द्वारा किये जा रहे प्रयोग से स्वच्छ भारत अभियान को एक नई दिशा मिल रही है।
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