Swachh Bharat Mission-Urban

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महाराष्ट्र ने तलाशे सिंगल यूज़ प्लास्टिक के स्मार्ट विकल्प

  • -विटा नगर परिषद् ने लगवाए थैला एटीएम, सर्कुलर इकोनॉमी के प्रति फैलाई जागरूकता
  • -बाजार में पॉलीबैग का मजबूत विकल्प बन कर उभर रहा कपड़े का थैला

बाज़ार जाते समय घर से कपड़े का थैला साथ ले जाने में ज्यादा समय नहीं लगता, ऑफिस या स्कूल में फैंसी प्लास्टिक के डिब्बे की जगह साधारण स्टील के टिफिन में खाना ले जाने में भी कोई हर्ज नहीं है, लेकिन फिर भी यह आदत हमारे व्यवहार में पूरी तरह से उतर नहीं पा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्वतंत्रता दिवस के भाषण में लोगों से सिंगल यूज़ प्लास्टिक को “ना” बोलने की अपील की थी। यही वजह है कि प्लास्टिक बैन करने के लिए सरकार कई तरह के प्रयास कर रही है और साथ ही उनके दूसरे विकल्प भी सुझा रही है। इन्हीं प्रयासों को सफल बनाने के लिए नियम बनाए और इन्हें सख्ती से लागू कराने के सफल प्रयास किए जा रहे हैं। स्वच्छता भारत मिशन के हिस्से के रूप में सिंगल यूज़ प्लास्टिक (एसयूपी) पर प्रतिबंध लगाने और उसका इस्तेमाल न करने के प्रति देश भर में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। सभी राज्य अपने अपने तरीके से योगदान दे रहे हैं, इसी कड़ी में महाराष्ट्र के अनोखे प्रयास भी सुर्खियां बटोर रहे हैं जिसमें से एक थैला एटीएम है।

सिंगल यूज प्लास्टिक पर एमओइएफसीसी ने बनाए नियम

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओइएफसीसी) ने 1 जुलाई, 2022 से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया। जिसके अंतर्गत प्लास्टिक के कई सामान जैसे प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम स्टिक, सजावट के लिए पॉलीस्टाइनिन (थर्मोकोल), प्लास्टिक की प्लेट,  कप,  गिलास,  कटलरी,  कांटे,  चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे, मिठाई के डिब्बों को पैक करने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक या पीवीसी बैनर, स्टिरर आदि को प्रतिबंधित कर दिया।


महाराष्ट्र की बात करें तो स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 में उसने अपनी भागीदारी दर्ज करा ली है। इसी दिशा में मजबूत कदम उठाते हुए महाराष्ट्र के विटा नगर परिषद् ने न सिर्फ सिंगल-यूज़ प्लास्टिक बैन किया बल्कि उसके कई विकल्प भी सुझाए। इन्हीं विकल्पों में से एक है थैला एटीएम, जिसने प्लास्टिक की थैलियों की जगह ली। परिषद् द्वारा इस विकल्प को सुझाने का तरीका चर्चा का विषय बना क्योंकि उन्होंने दुकानदारों और खरीददारों को थैले मुहैया कराने के लिए भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर पांच जगह ‘थैला एटीएम’ लगा दिए।

Autoमेटेड Thaiला Mशीन!




थैला एटीएम का फंक्शन बिल्कुल एक बैंक एटीएम की तरह ही है। जैसे आम व्यक्ति एटीएम को आसानी से ऑपरेट करता है वैसे ही थैला एटीएम को भी बहुत ही आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें उपयोगकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार सिक्का या नोट डालते हैं और वेंडिंग मशीन से आसानी से थैला मिल जाता है। इसमें उपलब्ध थैले, कॉटन यानि सूती कपड़े से बने हुए हैं। जो कि री-यूज़ किये जा सकते हैं। इस कॉनसेप्ट का उद्देश्य पर्यावरण को स्वच्छ और स्थिर बनाना है। उपयोगकर्ता को वॉइस ओवर के जरिए मशीन को प्रयोग करने के लिए निर्देश भी मिलते हैं। यह मशीन जीएसएम टेक्नॉलजी पर आधारित है। इस टेक्नॉलजी के माध्यम से परिषद्, मशीन में उपलब्ध और मशीन से कुल निकाले गए थैलों की निगरानी करता है। जैसे ही मशीन में थैलों की संख्या, तय की गई लिमिट से कम होती है तुरंत एक अलर्ट मैसेज परिषद् को पहुंच जाता है और वे उसे रीफिल कर देते हैं। मशीन में थैला ना होने कि स्थिति में या गलत सिक्का डालने पर उपयोगकर्ता के पैसे मशीन से लौटाने की सुविधा का भी ध्यान रखा गया है।

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महिलाओं को आर्थिक मजबूती और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक जरुरी कदम

थैला एटीएम से विटा के सेल्फ हैल्प ग्रुप्स को रोजगार के अवसर भी प्राप्त हो रहे हैं और आमदनी का भी जरिया बन गया है। इन स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं थैला, एटीएम वेंडिंग मशीन के लिए कपड़े के थैले सिल कर स्वयं को आत्मनिर्भर बन अपना जीवन स्वाभिमान के साथ जीना सीख रही हैं। थैला एटीएम लगने से अब तक लगभग 6 हजार थैलों की बिक्री हो चुकी है। सोमवार को लगने वाली साप्ताहिक बाजार में एक दिन में ही 200 थैलों की बिक्री हो जाती है। इसी कारण महिलाओं को इन थैलों को अधिक संख्या में तैयार करने के लिए एक लक्ष्य निर्धारण कर तय समय सीमा में काम करना होता है।


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विटा, महाराष्ट्र में पिछले 10 वर्षों से रहने वाली मुमताज राजू सैय्यद कहती हैं कि -

“मैं जब भी मार्केट आती थी तो प्लास्टिक का थैला ही मिलता था, जिसका दुबारा यूज़ भी नहीं किया जा सकता था और फेंकने पर भी उसके अवशेष पूरी तरह से नष्ट नहीं होते। लेकिन थैला एटीएम आने से अब कपड़े का थैला मिल जाता है जिससे शॉपिंग के दौरान समान रखना बिल्कुल आसान हो जाता है।”

हालांकि प्रशासन को एटीएम लगाने में काफी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। जैसे अलग-अलग साइज के थैलों को मशीन के लिए एकत्रित करना, लोगों को मार्केट में उपलब्ध महंगे कपड़े के थैलों को खरीदने के बजाय थैले का उपयोग करने के लिए जागरूक करना, मशीन के लिए 24 घंटे बैटरी बैकअप की सुविधा करना, मशीन लगाने के लिए उपयुक्त स्थान की खोज करना, मशीन को अलग-अलग तरह के सिक्कों और नोटों के लिए तैयार करना आदि। परंतु नगर परिषद् लगातार इन चुनौतियों से निपटने का प्रयास कर रहा है और इसमें सफलता भी हासिल कर रहा है। विटा नगर परिषद् के काउंसलर और विटा के बीजेपी अध्यक्ष श्री अनिल मनोहर बाबर जी ने भी परिषद् के इस सफल प्रयास की सराहना की और आभार प्रकट किया।

राज्य में व्यापक स्तर पर उठाए जा रहे हैं कदम

महाराष्ट्र प्लास्टिक को पूर्णतः प्रतिबंधित करने वाला देश का 18वां राज्य बन चुका है। यहां प्लास्टिक को पूरी तरह बहिष्कृत करने के लिए नगर परिषद् द्वारा व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। जैसे बाजार में परिषद् द्वारा औचक निरीक्षण के लिए अधिकारियों की तैनाती कर प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल करने वाले व्यापारियों, दुकानदारों व खरीददारों पर जुर्माना लगाया जा रहा है। एक टीम का गठन कर उनकी तैनाती बाजार में इस उद्देश्य से की गई है कि कोई भी दुकानदार या उपभोक्ता प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल ना कर सके और साथ ही पकड़े जाने पर भारी जुर्माना भी लगाया जा चुका है, जिसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। उदाहरणतः इन्डापुर में 25 किलो प्लास्टिक बैग जब्त कर परिषद् ने 90,000 रुपए का जुर्माना लगाया परिणामस्वरूप अब वहां 0.2 टन प्लास्टिक का उपयोग होने से बचा लिया है। लोगों में जागरूकता के लिए नुक्कड़ नाटक का आयोजन, अख़बारों में पैनल्टी की सूचना, प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के विषय पर लेख आदि छपवाकर राज्य स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं। महाराष्ट्र के वसई जिले के पालघर में 50000 पोस्टर लगवा कर प्रचार किया गया, नागपुर के वर्धा शहर में स्वयं सहायता समूह ने 17000 पेपर बैग्स बटवाए, वहीं अमरावती जिले के अकोला शहर में स्ट्रीट प्ले के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाने का सफल प्रयास किया गया।

महाराष्ट्र में कई शहर कचरे को इकट्ठा कर रहे हैं और साथ ही साथ रीसाइकल करने के लिए कई प्लांट लगा रहे हैं। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल्स (PPP) की सहयता से कई टन प्लास्टिक वेस्ट का निस्तारण सुनिश्चित किया। रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकल (3R) के तहत काफी सक्रियता से उपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है जैसे अमरावती में वेस्ट मैनेजमेंट से ईको-ब्रिक बनाए गए हैं एवम् कई शहरों में वेस्ट टु वंडर पार्कों में प्लास्टिक के इस्तेमाल से सौंदर्यीकरण किया गया है। केंद्र सरकार के निर्देशानुसार 60 माइक्रोन तक की मोटाई के कैरी बैग और कप, हार्ड फोम, सॉफ्ट फोम और लैमिनेटेड प्लास्टिक या एल्युमीनियम-कोटेड पैकेजिंग सामग्री का उपयोग कर महाराष्ट्र में सड़क का भी निर्माण किया जा रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक ओर ऐसा सूखा कूड़ा जिसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता, को वैकल्पिक ईंधन के रूप में सीमेंट एवं अन्य औद्योगिक ईकाइयों में इस्तेमाल किया जा रहा है। साथ ही महारष्ट्र एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिसपॉन्सिबिलिटी (EPR) गाइडलाइंस के तहत प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए सभी शहरी स्थानीय निकायों के लिए एक सस्टेनेबल प्रोसेस बना कर कार्य कर रहा है।

सर्कुलर इकोनॉमी के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा

नगर परिषद् द्वारा IEC कार्यक्रम के तहत लोगों को समस्या के समाधान के लिए प्लास्टिक के बदले ईको-फ्रेंडली विकल्पों को प्रदर्शित कर जागरूकता फैलाने का एक सफल प्रयास किया। प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में शामिल चीजों के बारे में लोगों को जागरूक किया। साथ ही उनके सफल निस्तारण करने और रीसाइकल के तरीके भी सुझाए, जिससे युवाओं के बीच सर्कुलर इकोनॉमी के प्रति भी जागरूकता बढ़ी। सर्कुलर इकोनॉमी यानि किसी इस्तेमाल की हुई वस्तु का पुनर्चक्रण कर पुनः इस्तेमाल कर राजस्व उत्पन्न करने की नीति युवाओं को लुभा रही है।

थैला एटीएम में प्रयोग किए जा रहे थैले भी सर्कुलर इकोनॉमी की प्रक्रिया का जीवंत उदाहरण हैं। कपड़े और जूट बैग मार्केट, बिजनेस या इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ उद्योग है। इसलिए इसमें नई इकाइयों के लिए अवसर भी हैं। जूट बैग के निर्माण से लघु एवं कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा मिल रहा है। विश्व में सबसे ज्यादा जूट का उत्पादन भारत में ही हो रहा है। यह पॉलीबैग के मुकाबले सौ प्रतिशत जैविक है। कपड़े और जूट के बैग कागज की तुलना में बहुत अधिक वजन उठा सकते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से इनका इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है।

स्टाइल स्टेटमेंट की राह पर कपड़े और जूट बैग्स

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आजकल सबसे ज्यादा ट्रेंड कंधे पर लटकाने वाले बैग्स का है। इन बैग्स की भी जगह जूट बैग्स ने ले ली है जो कि एक सकारात्मक परिवर्तन का उदारहण है। जो कि प्लास्टिक से जंग में एक अहम भूमिका निभा कर स्वच्छ भारत मिशन की सफलता में मील का पत्थर सिद्ध हो रहा है। इन दिनों जूट बैग्स स्टाइल स्टेटमेंट भी हैं व फैशनेबल, ट्रेंडी, फैंसी और क्लासिक बैग्स के रूप में उभर कर आ रहे हैं और अब प्लास्टिक बैग्स बंद होने के बाद लोगों की जरूरत बन गए हैं। यदि आप भी शॉपिंग पर जाने का सोच रहे हैं तो जूट बैग या कपड़े का थैला एक बेहतर विकल्प है। जूट के बैग और कपड़े के थैले को फैशन के अनुसार स्टाइलिश बनाया जा रहा है, ताकि यह खूबसूरत दिखें और शॉपिंग के अलावा ऑफिस या ट्रैवलिंग के लिए भी इस्तेमाल किये जा सकें।

प्रशासन को सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को शून्य करने में कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। जैसे अलग-अलग राज्यों में लोगों को बाजार में उपलब्ध ईको-फ्रेंडली विकल्प के प्रयोग के लिए सक्रिय बनाना, ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक स्थानों पर थैला एटीएम लगाना, उपलब्ध प्लास्टिक वेस्ट के निस्तारण के लिए श्रेडर मशीन लगाने के लिए उपयुक्त स्थान की खोज करना आदि। इन चुनौतियों से निपटने के लिए परिषद् नित नए समाधान की खोज कर रहा है और लगातार सफलता भी हासिल कर रहा है।

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