Swachh Bharat Mission-Urban

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  Mission Updates 

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महाकुंभ में इस वर्ष खुले में शौच के प्रति अपनाई जा रही ‘जीरो टोलरेंस अप्रोच’

औसतन 16 एमएलडी फीकल स्लज और 240 एमएलडी ग्रे-वॉटर जनरेट होने का अनुमान

स्थायी सीवेज तक पहुंचाने को 200 किमी की अस्थायी सीवेज निकासी प्रणाली की स्थापना

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत जहां एक ओर पूरे देश को कचरा मुक्त बनाने की मुहिम छेड़ी गई, वहीं तेजी से शौचालयों के निर्माण के बाद वर्ष 2019 में देश को ‘खुले में शौच से मुक्त’ भी घोषित कर दिया गया। मगर जैसा कि माननीय प्रधानमंत्री हमेशा कहते हैं कि स्वच्छता किसी एक दिन का काम नहीं, बल्कि निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है तो हर दिन नई चुनौतियां आएंगी और बदलते समय के साथ उन चुनौतियों से निपटने के लिए नए प्रयास जारी रखने होंगे। यही वजह है कि कचरे की निवासी रोकने के लिए आयोजनों को ‘जीरो वेस्ट इवेंट’ में बदलने से लेकर प्रयागराज में चल रहे आस्था के महाकुंभ को भी ‘सबसे बड़ा स्वच्छ समागम’ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। इस वर्ष महाकुंभ में उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार द्वारा खुले में शौच के प्रति भी ‘जीरो टोलरेंस अप्रोच’ अपनाई जा रही है।



प्रयागराज शहर में गंगा के किनारे 10,000 एकड़ में आयोजित हो रहे महाकुंभ में आगंतुक अपने टेंट और लग्जरी डोम्स में बस रहे हैं, जिसको ध्यान में हुए प्रयागराज नगर निगम ने खुद को पहले से ही बड़ी चुनौती के लिए तैयार किया हुआ है। 12 वर्ष के अंतराल में आयोजित होने वाला महाकुंभ इस बार 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा। 45 दिन तक चलने वाले इस धार्मिक आयोजन के दौरान हर दिन उत्पन्न होने वाले कचरे का प्रबंधन और ट्रीटमेंट सुनिश्चित किया जा रहा है।

देश के सबसे बड़े धार्मिक समागम के मेले में लगभग 40 करोड़ आगंतुकों के आने का अनुमान लगाया गया है। इतना ही नहीं, करीब 50 लाख तीर्थयात्री और साधु-संत पूरी मेला अवधि के लिए शिविरों में ठहरते हुए कल्पवास कर रहे हैं।

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निगम अधिकारियों के मुताबिक इस वर्ष उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा कुंभ मेले पर खर्च की जा रही कुल राशि में से 1,600 करोड़ रुपये अकेले जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वहन किए गए हैं। इन 1,600 करोड़ रुपये में से 316 करोड़ मेला क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बनाने पर खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें शौचालयों और पेशाबघरों की स्थापना से लेकर उनकी निगरानी तक शामिल है।

एक अनुमान यह भी है कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन प्रमुख स्नान के दौरान 50 लाख आगंतुक आएंगे। ऐसे इन प्रमुख दिनों पर प्रतिदिन लगभग 16 मिलियन लीटर फीकल स्लज यानी मल संबंधी कीचड़ और लगभग 240 मिलियन लीटर ग्रे-वॉटर निकलने की उम्मीद है।


यह सुविधाएं बेहतर तरीके से सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार ने दिसंबर 2024 में मेला क्षेत्र को चार महीने के लिए उत्तर प्रदेश के 76वें जिले के रूप में अधिसूचित किया था। साथ ही मेला मैदान को 25 सेक्टरों में विभाजित किया गया, सभी को अपने निर्धारित क्षेत्र में जल आपूर्ति, जल निकासी प्रणाली और अपशिष्ट प्रबंधन के बुनियादी ढांचे के साथ शहर के एक वार्ड के रूप में काम करना है। कहते हैं कि चुनौतियों एक अवसर लेकर आती हैं, इसी को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष कुंभ को ‘सबसे बड़ा स्वच्छ आयोजन’ बनाने के लिए कई विशेष उपाय किए गए हैं।

इन उपायों में 1.45 लाख शौचालयों की स्थापना, शौचालयों के अस्थायी सेप्टिक टैंकों में एकत्र अपशिष्ट और कीचड़ को संभालने के लिए पूर्वनिर्मित फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट (FSTPs) की स्थापना, सभी तरह के ग्रे-वॉटर को ट्रीटमेंट सुविधाओं के साथ-साथ स्थायी सीवेज पाइपलाइनों तक पहुंचाने के लिए 200 किलोमीटर की अस्थायी जल निकासी प्रणाली की स्थापना, विशेष वॉटर ट्रीटमेंट पॉन्ड्स का निर्माण और कीचड़ ले जाने वाले वाहनों की तैनाती सहित अन्य अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।

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खुले में शौच के प्रति राज्य सरकार की ‘जीरो-टोलरेंस अप्रोच’ के तहत महाकुंभ के लिए स्थापित 1.45 लाख शौचालयों में से 15,000 सेप्टिक टैंक के साथ फाइबर-रीइनफोर्स पॉलिमर (FRP) हैं, जबकि 10,000 अन्य FRP में फीकल स्लज को सोखने के वाले गड्ढे बनाए गए हैं। ये (FRP शौचालय) मुख्य रूप से सामुदायिक क्षेत्रों, शिविरों और अखाड़ों में स्थापित किए गए हैं। वहीं मेला मैदान के बाहरी इलाकों, सरकारी कार्यालय शिविरों आदि में पार्किंग क्षेत्रों में सेप्टिक टैंक के साथ लगभग 22,000 प्री-फैब्रिकेटेड स्टील शौचालय और फीकल स्लज सोखने वाले गड्ढों के साथ 17,000 शौचालय बनाए गए हैं। धार्मिक शिविरों में विशेष टेंट-प्रकार के शौचालय बनाए गए हैं। चूंकि मेला क्षेत्र में पारंपरिक सीवरेज सिस्टम संभव नहीं है, इसलिए संपूर्ण अपशिष्ट जल प्रबंधन की रणनीति सेप्टिक टैंक, सेसपूल वाहनों और एफएसटीपी के उपयोग पर आधारित है। फीकल स्लज प्रबंधन पर मुख्य रूप से फोकस है इसलिए कीचड़ को एफएसटीपी तक ले जाने के लिए 250 सेसपूल वाहन तैनात किए गए हैं। मेला मैदान को साफ रखने के लिए अधिकारियों द्वारा विभिन्न उपायों के अलावा, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) भी गंगा की सफाई पर कड़ी नजर रख रहा है क्योंकि तीर्थयात्री नदी में डुबकी लगाएंगे।

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