बेकार मलबे को नया आकार देकर पेश किया जा रहा है ‘वेस्ट टु वेल्थ’ अवधारणा का जीवंत उदाहरण
आइए समझें, सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट पर मलबा रीसाइकल करने की प्रक्रिया
भारत आज देशभर के शहरों से निकलने वाले हर तरह के कचरे का 76 प्रतिशत प्रतिदिन निस्तारित कर रहा है। निर्माण
कार्यों और तोड़फोड़ के दौरान निकलने वाला मलबा भी एक तरह का कचरा है, जिसे कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलेशन
(सीएंडडी) वेस्ट कहा जाता है। मगर क्या आपको पता है कि यही मलबा सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट्स पर
पहुंचकर कमाई का साधन बन जाता है। हालांकि इसके लिए सीएंडडी वेस्ट प्लांट के कर्मचारी हर दिन सेफ्टी गियर
पहनकर चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया पूरी करते हैं। वे कड़ी मशक्कत से मलबे को एक नया आकार दे रहे हैं और उसे
‘सर्कुलर इकोनॉमी’ का हिस्सा बना रहे हैं। सीएंडडी वेस्ट प्लांट क्या होता है और कैसे काम करता है, इस
रिपोर्ट में जानिए आंखों देखा हाल। हमारी स्वच्छ भारत मिशन-शहरी टीम ने नोएडा स्थित सीएंडडी वेस्ट
प्रोसेसिंग प्लांट पर एक दिन बिताया, जहां कर्मचारी मिट्टी रूपी मलबे को नए उत्पाद में बदलकर ‘वेस्ट टु
वेल्थ’ का साधन बना रहे हैं।
मलबे से उत्पाद बनाने की प्रक्रिया : नोएडा प्लांट पर स्वच्छ टीम को देखने को मिला कि वहां विभिन्न
आकार में ऐसा मलबा आता है, जो कहीं निर्माण कार्यों के दौरान बचता है या अवैध निर्माण ढहाए जाने के दौरान
निकलता है। प्लांट संचालक मुकेश धीमान के मुताबिक प्लांट पर 350 एमएम साइज तक का मलबा लिया जाता है, अगर
इससे बड़े साइज में आता है तो वह सीधे मशीनों में छंटाई के लिए नहीं जा सकता। बड़े साइज के मलबे को स्टोर
करके रखा जाता है और हर 15 दिन में उसे रॉक ब्रेकर मशीन से तोड़कर छोटे साइज में किया जाता है।
छोटा साइज होने के बाद उसे मशीनों में डाल दिया जाता है, हालांकि आम तौर पर प्लांट में 250 या 200 एमएम के
साइज वाला मलबा आता है, जिसे क्रशर मशीन में भेजा जाता है और उसका साइज 140 एमएम तक कर दिया जाता है। छंटाई
होने पर अंत में मिट्टी जैसे बारीक साइज का मलबा भी निकलता है। इन सभी को सीमेंट में मिलाकर सीमेंटेड ईंटों,
कलरफुल पेवर ब्लॉक्स और टाइल्स आदि जैसे उत्पाद में बदलकर बाजार में भेजा जाता है। इस तरह मलबे को रीसाइकल
करके दोबारा इस्तेमाल करने योग्य उत्पाद बनाए जाते हैं, जो बाजार में मिलने वाले दूसरे उत्पादों से सस्ते और
टिकाऊ होते हैं क्योंकि उसमें कोई मिलावट नहीं होती।
धूल के दुष्प्रभाव से बचाने को विशेष सुविधाएं : गीले मलबे की छंटाई में धूल नाम मात्र की निकलती है, मगर उसका भी प्रभाव प्लांट और कर्मचारियों पर न पड़े, इसके लिए दिनभर ऐसे पानी का छिड़काव किया जाता है, जो पहले इस्तेमाल हो चुका होता है। जहां ज्यादा छिड़काव की जरूरत होती है, वहां हाई प्रेशर स्प्रिंकलर्स की व्यवस्था की जाती है। एक पॉइंट पर पूरे मलबे को गीला किया जाता है, वाहनों के टायरों में यूज्ड वॉटर का प्रेशर मारा जाता है। प्लांट पर सफाई लगातार दो-तीन कर्मचारी लगे रहते हैं। यहां फॉग गन की मदद से प्लांट और उसके आसपास विकसित किए गए हरित पार्क और पेड़-पौधों में फॉगिंग करके उनपर जमी धूल हटाने का काम सुनिश्चित किया जाता है। इसके अलावा प्लांट्स की आईईसी टीम द्वारा आसपास के क्षेत्र में लोगों को बताया जाता है कि वेस्ट मलबे को कहां डाला जाए, ताकि वह कूड़े के ढेर में बदलने के बजाय प्लांट पहुंचकर रीसाइक्लिंग का हिस्सा बन सके।
सीएंडडी वेस्ट प्लांट पर काम और दिनचर्या : सुबह हाजिरी के बाद कर्मचारी कंपनी द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से डिजाइन की गई विशेष यूनिफॉर्म पहनते हैं। प्लांट के कर्मचारी अंकित तिवारी ने बताया कि उनके सेफ्टी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट दी जाती है, जिसमें जैकेट, हेलमेट आदि सुरक्षा उपकरण शामिल होते हैं। हूटर बजते के बाद मलबे को छोटे-बड़े आकार में छांटने वाली मशीनें चालू की जाती हैं। एक ऑपरेटर मलबा लाने वाले वाहन का वजन करता है, फिर उसे गीला करके उतरवाया जाता है। एक इंडिकेटर हॉर्न बजने के बाद मलबा मशीन में डाला जाता है, दूसरे हॉर्न के बाद कोई मलबा उसमें नहीं डाला जाता। शाम साढ़े चार बजे प्लांट पर काम बंद कर दिया जाता है। फिर प्लांट में मशीनों के नीचे साफ-सफाई और फिर उनकी ग्रीसिंग का काम चलता है।
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