स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत हाल में हुआ ‘स्वच्छता ही सेवा’ पखवाड़ा पूरे देश में चर्चित रहा। पखवाड़े की थीम ‘स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता’ रही। इस थीम का लक्ष्य समाज के हर वर्ग में स्वच्छता को एक नई सोच और संस्कारों में समाहित करना था। स्वच्छता के प्रति समर्पण को दर्शाने वाली ढेरों प्रेरणादायक तस्वीरें सामने आईं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि हर नागरिक अपने स्वभाव में स्वच्छता को लाने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी के संस्कारों में भी स्वच्छता को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। ‘स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता’ को चरितार्थ करते हुए विभिन्न राज्यों ने दुर्गा पूजा में इसका प्रमाण दिया।
पश्चिम बंगाल के कोलकाता में दुर्गा पूजा विशेष हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। आज कल हर पर्व पर्यावरण को ध्यान में रख कर ईको-फ्रेंडली वस्तुओं का उपयोग कर मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष एक कदम और आगे बढ़ कर कोलकाता में पंडालों को तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर ईको-फ्रेंडली और पूर्ण रूप से प्राकृतिक साज-सज्जा के विकल्प को चुन कर आकर्षण का केंद्र बन गया।
कोलकाता के एक प्रसिद्ध क्लब लालबागान नबांकुर ने अपने दुर्गा पंडाल को 8,000 प्राकृतिक पौधों से सजाकर एक अद्भुत हरे-भरे पंडाल में बदल दिया। पंडाल की इस वर्ष की थीम "नबांकुर" यानि “नए जीवन” पर आधारित रही।
कोलकाता में दुर्गा पूजा बेहद भव्य स्तर पर मनाया जाता है जिसके कारण उत्सव के अंत में बहुत सारा कचरा भी पैदा हो जाता है। इसी समस्या से निपटने के लिए इस वर्ष महीनों पहले से ही लालबागान क्लब के सदस्यों ने राज्य के कई जिलों से पौधे एकत्रित करने शुरु कर दिए थे। पंडाल में मनी प्लांट, मशरूम, एरेका पाम और कई अन्य पौधों की 50 से अधिक किस्मों का उपयोग किया गया। उत्सव के बाद आगंतुकों को पौधों को गोद लेने का अवसर या पर्यावरण संगठनों को दान करने की विशेष व्यवस्था की गई।
वहीं दक्षिण कोलकाता के पास गोल्फ ग्रीन में इस साल का पंडाल पूरी तरह से आरआरआर (रिड्यूस, रीयूज़ और रीसाइकल) थीम से प्रेरित महिलाओं द्वारा तैयार कर महिलाओं को ही समर्पित किया गया। इस पंडाल में साज-सज्जा की तैयारियों से लेकर समापन तक का मोर्चा महिलाओं ने थामा। सस्टेनेबिलिटी का प्रतिनिधित्व करने वाला यह पंडाल, पूरी तरह से उपयोग किए गए कपड़ों को रीयूज कर महिला समूहों द्वारा तैयार किया गया।
समाज के हर वर्ग से सम्मिलित कलाकारों में केवल महिलाएं शामिल हैं। सुजाता चटर्जी द्वारा संचालित यह समूह पिछले सात वर्षों से "अर्बन वेस्ट" को कम करने के लिए काम कर रहा है।
इस समूह की महिलाएं कचरे को कंचन में बदलने के दृढ़ संकल्प के साथ एकजुट हो कर काम कर रही हैं। महिलाओं ने इस पर्व पर पूजा पंडाल को केवल काम के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे सस्टेनेबल और महिला सशक्तीकरण के उत्सव के रूप में बदलने का काम भी किया। दुर्गा पूजा पंडाल और सजावट में प्रत्येक वस्तु गोल्फ ग्रीन के निवासियों द्वारा दान किए गए कपड़ों को रीसाइकल करके बनाया गया है।
पंडाल में लगी लाईट्स भी बांस के छोटे-छोटे टुकड़ों से बनाई गई। इतना ही नहीं कपड़ों में लगे बटनों का भी पुन: उपयोग करके इस समूह ने आरआरआर पद्धति और स्वच्छता का स्वभाव में और हमारी संस्कृति में समाहित करने का जीवंत प्रमाण दिया।
रचनात्मकता और पर्यावरण जागरूकता के लिए प्रसिद्ध असम में धुबरी के कलाकार, प्रदीप कुमार घोष ने भी ‘वेस्ट टु आर्ट’ का एक अनूठा प्रमाण दिया। उन्होंने प्लास्टिक की बोतलों के ढक्कनों का इस्तेमाल कर मां दुर्गा की मूर्ति तैयार की। पांच फीट ऊंची यह मूर्ति सस्टेनेबिलिटी की एक अद्भुत मिसाल बन गई। इस प्रतिमा को बनाने के लिए पिछले नौ महीनों में 8,000 से अधिक प्लास्टिक के ढक्कनों को एकत्रित कर निर्माण किया गया। यह पहली बार नहीं है जब घोष ने ईको-फ्रेंडली कला का प्रदर्शन किया है। एक दशक से अधिक समय से अपशिष्ट पदार्थों से मूर्तियां बना रहे हैं। पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति कलाकार के समर्पण की पूरे असम में सराहना की गई है, कई लोगों ने उनकी कला के माध्यम से अपशिष्ट को कम करने के उनके प्रयासों को दोहराने का प्रयास भी कर रहे हैं।
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