सावन की शुरुआत के साथ ही श्रद्धालुओं की वार्षिक तीर्थयात्रा, कांवड़ यात्रा शुरू हो जाती है। भक्तों
की श्रद्धा, उनके विश्वास के साथ वर्षों से चली आ रही कांवड़ यात्रा की परंपरा को सफलतापूर्वक आगे
बढ़ाना प्रशासन की बड़ी जिम्मेदारी है। इसी कड़ी में स्वच्छ और सुरक्षित कांवड़ यात्रा को सफल बनाने में
गंगा किनारे बसे शहरों (गंगा टाउन्स) का बड़ा योगदान है। गंगा नदी और उसके किनारे बसे शहरों को कचरा
मुक्त बनाए रखने की प्रतिबद्धता स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के लक्ष्य का महत्वपूर्ण पहलू है। लाखों
श्रद्धालु कांवड़ यात्रा के लिए उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, बिहार में सुल्तानगंज, उत्तर
प्रदेश में प्रयागराज, अयोध्या और वाराणसी जैसे तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं और कांवड़ में बंधे
पात्रों में गंगा जल लेकर लौटते हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड में 98
गंगा टाउन जल क्षेत्र की स्वच्छता व्यवस्थाओं में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
हरिद्वार 1 लाख से अधिक आबादी वाले गंगा किनारे बसे सबसे स्वच्छ शहरों में से एक है और प्रयागराज,
वाराणसी जैसे अन्य गंगा किनारे बसे शहरों में भी पर्यटकों की संख्या में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ
निरंतर शहरी विकास की चुनौती बनी हुई है। इन परिस्थितियों के चलते यहां काफी मात्रा में सीवरेज उत्पन्न
हो रहा है, जो सीधे नदियों में जाता है। इनसे निपटने के लिए सभी शहर अलग-अलग स्तर पर प्रयास कर रहे हैं।
हरिद्वार में 12 दिनों की कांवड़ यात्रा के दौरान लगभग 28,000 मीट्रिक टन कूड़ा उत्पन्न हुआ। यहां
हरिद्वार नगर निगम (एमसीएच) की स्वच्छता टीमें पूरी कांवड़ यात्रा के दौरान कूड़े के निपटान के लिए
लगातार काम कर रही थीं, इसके साथ ही यात्रा समाप्त होने के ठीक बाद 1,200 सफाई कर्मचारियों की आठ टीमों
ने कूड़े को निपटाने का काम किया। वहीं दूसरी तरफ उत्तरकाशी में चार धाम यात्रा और कांवड़ यात्रा के
दौरान जो भी गीला कूड़ा और सूखा कूड़ा प्राप्त होता है उन्हें क्रमशः खाद और सिलियां बनाकर रीसाइक्लिंग
के लिए भेजा जाता है। विशेषतः धार्मिक यात्रा के दौरान रात्रि सफाई अभियान चला कर नगर के मुख्य मार्गों,
चौराहों एवं मंदिरों के आसपास सफाई की व्यवस्था की जाती है।
स्वच्छ सर्वेक्षण-2022 में 1 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में दूसरा स्थान प्राप्त करने वाले वाराणसी में भी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वाराणसी में 700 टीपीडी क्षमता का प्रोसेसिंग प्लांट एक्टिव है। यहां लगभग 666 टीपीडी कचरा निकलता है, जिसमें से 60 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल और 40 प्रतिशत नॉन बायोडिग्रेडेबल कचरा प्रोसेस किया जाता है अर्थात् वाराणसी में प्रोसेसिंग क्षमता कुल अपशिष्ट उत्पादन से अधिक है। कांवड़ मार्गों पर पूरे दिन सफाई बरक़रार रखने के लिए प्रत्येक 100 मीटर पर ‘दो बिन’ (हरा व नीला डस्टबिन) की व्यवस्था की गई। खास तौर पर दशाश्वमेध घाट पर साफ सफाई की गई और चकर्ड प्लेटें बिछाई गईं।
वहीं उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर नगर निगम में भी कांवड़ यात्रा के दौरान विशेष सफाई आभियान चलाया
गया। गढ़मुक्तेश्वर के घाट की स्वच्छता के अलावा कांवड़ मार्गों, आसपास स्थित मंदिरों, निकाय की सड़कों,
गलियों आदि की सफाई के लिए माइक्रो प्लान बना कर स्वच्छता के मानदंडों को स्थापित किया। कांवड़ मार्गों,
शिवालयों और घाटों पर विशेष रूप से स्वच्छता कर्मियों को तैनात किया गया। इस अभियान की मॉनिटरिंग निगम
द्वारा ऑनलाइन व अधिकारियों की नियुक्ति के द्वारा कराई गई। सफाई के दौरान एकत्र किए गए कूड़े को उसी
समय लैंडफिल साइट पर अथवा वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट तक पहुंचा गया। बारिश के कारण होने वाली परेशानी से
बचने के लिए किसी भी दशा में सड़कों पर कचरा या सिल्ट न छोड़ कर कांवड़ यात्रा को श्रद्धालुओं के लिए
सुगम बनाया। विभिन्न मंदिरों में कांवड़ यात्रा से लेकर जलाभिषेक तक के कार्यक्रमों को प्लास्टिक मुक्त
रखने के लिए विशेष योजना तैयार की गई।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के तहत प्रयागराज नगर निगम ने कांवड़ यात्रा 2023 के आयोजन में श्रद्धालुओं
को प्लास्टिक मुक्त, कचरा मुक्त, खुले में शौच मुक्त और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित
किया। साथ ही कांवड़ क्षेत्र में उत्पन्न कचरे के औपचारिक संचालन और प्रोसेसिंग पर भी ध्यान केंद्रित
किया गया। इसके लिए प्रयागराज नगर निगम ने विभिन्न गतिविधियों का आयोजन भी किया।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 का एक मुख्य घटक गंगा टाउन के घाटों या नदी तटों के पास से ओपन डंपसाइट को हटाना, नागरिकों तक गंदगी न फैलाने के संदेशों को पहुंचाना, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और घाटों के लिए नियमित सफाई व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करना है। देश के नागरिकों, बाहर से आने वाले तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों समेत पूरे समाज में व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करना ही एक मात्र सूत्र है जिससे गंगा किनारे बसे शहर भी ‘कचरा मुक्त शहर’ का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।
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