Swachh Bharat Mission Urban

स्वच्छ सुरक्षित सुचारू शौचालय

- खुले में शौच से मुक्त और हर घर शौचालय के बाद शुरू हुई आकांक्षी शौचालयों की प्रतिस्पर्धा
- अब हो रहा है महिलाओं, दिव्यांगों और ट्रांसजेंडर्स के लिए आकांक्षाओं के अनुरूप शौचालय बनाने का काम
- बुजुर्गों और बच्चों के लिए भी कई जगह शहरी शौचालयों में उपलब्ध हैं विशेष सुविधाएं



साल 2014 में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत देश भर के शहरों को ‘खुले में शौच से मुक्त बनाने’ की मुहिम शुरू की गई और साल 2019 में वह लक्ष्य हासिल कर ‘हर घर शौचालय’ सुनिश्चित किया गया। आज हम केवल आकांक्षी शौचालय सुनिश्चित करने की बात नहीं कर रहे, बल्कि महिलाओं, दिव्यांगों, ट्रांसजेंडर्स समेत बुजुर्गों और बच्चों, ‘सभी के लिए आकांक्षाओं के अनुरूप शौचालय’ की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। यही वजह है कि कई शहरों से महिलाओं, दिव्यांगों और ट्रांसजेंडर्स के लिए बनाए गए शौचालयों के शानदार उदाहरण भी सामने आ रहे हैं। आज हमारे शहरी क्षेत्रों में 63 लाख से ज्यादा घरेलू और 6 लाख से ज्यादा सार्वजनिक/सामुदायिक शौचालय स्थापित किए जा चुके हैं।

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महिलाओं के लिए शौचालय की दिशा में बहुत तेजी से काम हुआ है। आज हर शहर में पिंक शौचालय मिल जाएंगे, जो कि न सिर्फ महिलाओं को समर्पित हैं, बल्कि आज उनमें महिलाओं से जुड़ी तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं। आज महिलाओं के लिए बहुत से अनोखे शौचालय भी देखने को मिल रहे हैं, जिसमें से एक है चेन्नई, तमिलनाडु का ‘She (शी) टॉयलेट’ जो यहां जोन-10 स्टेशन में तैनात बस में स्थापित किया गया है। यह ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन द्वारा महिलाओं के लिए लॉन्च किए गए मोबाइल यानी चलते-फिरते शौचालयों में पहला उदाहरण है, जिसके बाद शहर के 15 जोन में 15 ‘शी टॉयलेट्स’ को हरी झंडी दिखाई गई। हर ‘शी टॉयलेट’ में चार सीट हैं, जिनमें तीन भारतीय शैली में और एक पश्चिमी शैली में बनाई गई है। इन शौचालयों में सीवेज को इकट्ठा करने के बाद शहर भर में स्थित चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड के पंपिंग स्टेशनों में डाल दिया जाता है। प्रत्येक शौचालय के टैंक में 1,000 लीटर का स्पेस होता है।

दक्षिण मुंबई, महाराष्ट्र में भी जगह की कमी को देखते हुए महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालय उपलब्ध कराने के लिए इसी तरह की परियोजना पर काम किया गया है। यहां भी पुरानी बेकार हो चुकी बसों का पुन: उपयोग करते हुए शी टॉयलेट्स की तर्ज पर 'Ti' (ती) सुविधा के नाम से शुरू किया गया है। इन्हें नए पिंक टॉयलेट के रूप में तैयार किया गया है, जिसमें चार टॉयलेट सीटें, दो वॉश बेसिन, एक चेंजिंग रूम और महिला स्वच्छता उत्पादों के लिए वेंडिंग मशीनें, स्तनपान के लिए फीडिंग रूम बनाए जा रहे हैं।

अहमदाबाद, गुजरात में महिलाओं के लिए विशेष रूप से ऐसे शौचालयों की शुरुआत की गई है, जिन्हें खुद महिलाओं द्वारा ही चलाया जाता है। यह भी विभिन्न जरूरी सुविधाओं से संपन्न है, जिसमें एक फीडिंग रूम समेत सैनिटरी नैपकिन के लिए वेंडिंग मशीन, इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन को डिस्पोज करने के लिए इंसीनरेटर इकाइयां और शीशे के साथ चेंजिंग रूम शामिल हैं। दोनों ही जगह प्रबंधन महिला केयरटेकर्स और अटेंडेंट द्वारा किया जा रहा है।

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दिव्यांगों के लिए शौचालय की बात करें तो असम के रेलवे स्टेशनों पर दिव्यांगों को समर्पित उनके अनुकूल शौचालय उपलब्ध कराए गए हैं। यहां सभी कमर्शियल फ्रंटलाइन कर्मचारियों को दिव्यांग यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसमें शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रदान की जाने वाली विशेष सुविधाओं समेत व्हील चेयर के प्रावधान पर भी प्रशिक्षण दिया जाता है। नोएडा के विभिन्न क्षेत्रों में कुछ पूर्वनिर्मित शौचालय दिव्यांगों के अनुकूल हैं और रैंप, व्हील चेयर, सहायक, सूचना के लिए स्पर्श स्टिकर प्रदान करते हैं। इसी तरह से बुजुर्गों और बच्चों के लिए शौचालयों में विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं, जिनमें उठने और बैठने के लिए टॉयलेट सीट के पास पकड़ने के लिए स्टील के सपोर्टर्स लगाए गए हैं। वहीं बच्चों के लिए छोटे साइज की टॉयलेट सीट और यूरिनल्स लगाए गए हैं।


ट्रांसजेंडर्स के लिए शौचालय उपलब्ध कराने के लिए नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी), जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है, उसने हाई कोर्ट के समक्ष जानकारी दी कि इस एरिया में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए 12 शौचालय शुरू किए जा चुके हैं। मध्य प्रदेश, भोपाल में ट्रांसजेंडर्स यानी तीसरी आबादी के लिए विशेष तौर पर अलग से शौचालय बनाए गए हैं, ताकि वह महिलाओं और पुरुषों के शौचालयों में जाने के लिए मजबूर ना हों और सम्मान के साथ अपने लिए बनाए गए शौचालयों का इस्तेमाल कर सकें। मंगलवारा इलाके में इन शौचालयों का निर्माण भोपाल नगर निगम (बीएमसी) द्वारा किया गया है, जिनमें चेंज रूम/मेक-अप रूम भी है। देश के बाकी शहरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करते हुए, कर्नाटक के मैसूर में सिटी बस स्टैंड पर ट्रांसजेंडरों के लिए एक शौचालय बनाया गया। यह शौचालय पश्चिमी शैली के हैं, इनके दरवाजों पर उपयोगकर्ताओं के लिंग को दर्शाने वाली कोई छवि नहीं लगाई गई है, ताकि सभी समानता अधिकारों को महसूस कर सकें।


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आज हमारे देश में कई शहरों ने खुले में शौच से मुक्त होने के मामले में ओडीएफ, ओडीएफ+ और ओडीएफ++ की श्रेणियां हासिल कर ली हैं। वर्तमान में 4355 शहर ओडीएफ, 3547 ओडीएफ+ और 1191 शहर ओडीएफ++ श्रेणी प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा एक बार इस्तेमाल हो चुके पानी का शौचालयों समेत अन्य व्यवस्थाओं में पुन: उपयोग करने वाले 14 शहरों को वॉटर+ श्रेणी में भी जगह मिल चुकी है।

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