Swachh Bharat Mission Urban 2.0

स्वच्छता क्षमता और शिल्प कौशल

स्वच्छता मिशन को गति देता शिल्प कौशल

- कम में अधिक काम करना- शिल्प कौशल की शक्ति
- विवेकहीन उपभोग से लेकर विवेकपूर्ण उपयोग तक





आज विनाशकारी उपभोग की जगह हमें संसाधनों का उपयोग सोच-समझकर करने की जरूरत है - श्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री


स्वच्छता की देश व्यापी यात्रा में शिल्प कौशल कला इस राह को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान कर रहा है। आज जलवायु परिवर्तन के दौर में व्यवहार परिवर्तन के कई महत्वपूर्ण कदम उठाने बेहद आवश्यक हो चुके हैं। परिस्थिति यह है कि ऐसी सभी वस्तुओं को व्यवहारिक जीवन से निकाल देना है जो स्वच्छता की यात्रा में अवरोध बन रही हों, जिनमें मुख्यतः सिंगल यूज़ प्लास्टिक है। शिल्प कौशल एक ऐसा माध्यम बन कर उभर रहा है जिसकी मदद से ईको-फ्रेंडली वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है और व्यवहार परिवर्तन के साथ-साथ शिल्पकारों को आर्थिक मजबूती भी प्रदान कर रहा है।


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शिल्प कौशल को “वोकल फॉर लोकल” मुहिम द्वारा एक नई जान और दिशा प्राप्त हुई। जिससे पर्यावरण का संरक्षण, जीवनशैली में व्यवहार परिवर्तन और स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों को चुनने, एकल-उपयोग प्लास्टिक से मुक्त स्वच्छता के लिए संवेदनशील पर्यावरण और समुदायों के प्रति जिम्मेदारी की भावना पैदा करना है। इसी प्रयास के अंतर्गत चंडीगढ़ नगर निगम, नागरिक भागीदारी, स्वच्छ व सस्टेनेबल शहर को बढ़ावा देने के लिए अग्रसर है। चंडीगढ़ में एक मॉल में "प्रारंभ" नाम से एक अनूठा स्टॉल लगाया। "प्रारंभ" स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित एक अनूठा स्टोर है, जो एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों के लिए पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करता है। इन विकल्पों की सफलता का अंदाजा केवल 5 दिनों के भीतर लगभग 1.30 लाख की प्रभावशाली बिक्री से स्पष्ट हो जाता है।


वहीं लगातार छठी बार स्वच्छता चैंपियन रह चुके इंदौर में आईएमसी ने चुनाव मतदान केंद्र को नवोन्मेषी ढंग से तैयार किया जो 3आर अवधारणा के सिद्धांत पर आधारित था। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को 3आर की अवधारणा को अपनाने व टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल जीवन शैली को बढ़ावा देना एवं चुनावी प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा को कम करना था। इसके अलावा, महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) द्वारा निर्मित पिंक बूथ, महिला सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली प्रतीक उभर कर सामने आया जो महिलाओं का हमारे समुदाय में महत्वपूर्ण उनकी भूमिका को उजागर करता है और उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है।


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उधर दूसरी तरफ दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में सस्टेनेबल जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया जा रहा है। ईको-फ्रेंडली पूजा सामग्री जो कि तिरुपति में सबसे अधिक उपयोग होने वाली वस्तु है के लिए बेहद विस्तार पूर्वक कार्य किया जा रहा है। तिरुपति मंदिर में लगभग 1.5 टन अर्पित फूलों को 180 महिलाओं की मदद से प्रसंस्कृत कर 40,000 अगरबत्तियां बनाई जा रही हैं।

शिल्प कौशल की इन अनेक विधाओं का उद्देश्य टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना, स्थानीय रूप से निर्मित सामान का उपयोग करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर सक्रिय रूप से स्वच्छ और हरित वातावरण प्रदान करना है।

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